#प्रो की गणना
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indlivebulletin · 19 days ago
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80 हजार दीपों से बना स्वास्तिक पूरे विश्व को देगा शुभता का संदेश
अयोध्या। दीपोत्सव 2024 को लेकर एक ओर जहां योगी सरकार की तैयारियां अंतिम चरण में हैं, वहीं डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो प्रतिभा गोयल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंशानुरूप दीपोत्सव-2024 को ऐतिहासिक बनाने के लिए सरयू के 55 घाटों पर भारी भरकम टीम उतार दी है। दो हजार से अधिक पर्यवेक्षक, समन्वयक, घाट प्रभारी, दीप गणना व अन्य सदस्यों की देखरेख में 30 हजार से अधिक वालंटियर…
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sandhyabakshi · 4 years ago
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UPHESC: राजनीति विज्ञान और हिंदी की काउंसिलिंग शुरू हुई
UPHESC: राजनीति विज्ञान और हिंदी की काउंसिलिंग शुरू हुई
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उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से हिंदी और राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए चयनित अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग गुरुवार से शुरू हो सकती हैं। इन दोनों विषयों के चयनित अभ्यर्थियों ने उच्च शिक्षा निदेशालय की काउंसिलिंग की वेबसाइट पर कॉलेजों का विकल्प भरना शुरू कर दिया है। यह क्रम अभी 22 जून तक चलेगा।
काउंसलिंग की वेबसाइट पर प्रदेश के उन सहायता प्राप्त कॉलेजों का ब्योरा दिया गया है, जहां…
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shaileshg · 4 years ago
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30 अक्टूबर, शुक्रवार यानी आज शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा। आज रात ही चंद्रमा पूरी 16 कलाओं वाला रहेगा। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्र पूजा और चांदी के बर्तन में दूध-चावल से बनी खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है। धार्मिक और व्यवहारिक महत्व होने के साथ ही सेहत के नजरिये से आयुर्वेद में भी इस परंपरा को खास बताया गया है।
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के मुताबिक शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय आज शाम करीब 5.20 पर हो जाएगा। इसलिए रातभर पूर्णिमा तिथि रहेगी। वहीं, अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि का व्रत रखा जाएगा। इसी दिन तीर्थ स्नान, दान और पूर्णिमा पर होनी वाली पूजा-पाठ भी की जा सकेगी। इस दिन रात लगभग 8 बजे पूर्णिमा तिथि खत्म हो जाएगी।
शरद पूर्णिमा व्यवहारिक महत्व 9 दिनों तक व्रत-उपवास और नियम-संयम के साथ रहकर शक्ति पूजा की जाती है। जिससे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूती मिलती है। शक्ति इकट्ठा करने के बाद उस ऊर्जा का शरीर में संचार करने और उसे अमृत बनाने के लिए शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर ��ंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ अमृत वर्षा करता है। इस समय चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसके बाद उसकी किरणों के अमृत को दूध से बनी खीर के जरिए शरीर में उतारा जाता है।
अश्विन महीने की पूर्णिमा ही क्यों अश्विन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र के स्वामी अश्विनी कुमार हैं। वेदों और पुराणों में अश्विनी कुमार को देवताओं के चिकित्सक बताया गया है। यानी इनसे ही देवताओं को सोम और अमृत मिलता है। जब इनके ही नक्षत्र में चंद्रमा पूरी 16 कलाओं के साथ मौजूद होता है तो हर तरह की बीमारियों को दूर करता है। ये स्थिति पूरे साल में सिर्फ एक ही बार शरद ऋतु के दौरान बनती है। इसलिए शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इसी वजह से इस पूर्णिमा को रोग नाशिनी भी कहा जाता है।
चावल की ही खीर क्यों बीएचयू के प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि खीर इसलिए बनाते हैं, क्योंकि ग्रंथों में बताए गए पांच अमृत में से पहला दूध है। ज्योतिष ग्रंथों में भी बताया गया है कि दूध पर चंद्रमा का खास प्रभाव होता है। चंद्र दोष को खत्म करने के लिए दूध का दान किया जाता है। वहीं, खीर में चावल का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि वेदों में चावल को हविष्य अन्न कहा जाता है। यानि हवन करने के योग्य अन्न चावल ही है। चावल को अक्षत कहा जाता है। इसका मतलब है, जो कभी खंडित न हो। चंद्रमा की रोशनी से मिलने वाले अमृत का अंश चावल में आसानी से आ जाता है और उस चावल को खाने से शरीर पर उसका पूरा असर होता है।
चांदी का ही बर्तन क्यों वाराणसी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी वैद्य प्रशांत मिश्रा बताते हैं कि चांदी का बर्तन खाने की चीजों को कीटाणुओं से बचाए रखने में कारगर होता है। चांदी के बर्तनों में पानी, दूध या कोई और तरल पदार्थ रखने से उसकी शुद्धता बढ़ जाती है। इसके साथ ही चांदी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के डॉ. अजय साहू और डॉ. हरीश भाकुनी के मुताबिक, ये धातु 100 फीसदी बैक्टीरिया फ्री होती है इसलिए इंफेक्शन से भी बचाती है। इनका कहना है कि चांदी के बर्तन में खाने से किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता है। ये हर तरह से सेह�� के लिए अच्छी ही होती है। इसलिए हर तरह के संक्रमण से बचने के लिए शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है।
चंद्रमा का चरम काल ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र का कहना है कि पंचांग की गणना के मुताबिक, 30 अक्टूबर की रात 12 बजे बाद चंद्रमा पृथ्वी के करीब आ जाएगा। यानी कह सकते हैं कि 31 अक्टूबर की रात करीब 2.13 से सुबह 5.25 के बीच में चंद्रमा चरम पर रहेगा। इस दौरान खीर पर चंद्रमा का औषधीय असर और बढ़ जाएगा। 30 अक्टूबर की रात में करीब 10.30 से 12:50 के बीच कर्क लग्न रहेगा। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होने से ये समय चंद्रमा की पूजा के लिए खास रहेगा। पं. मिश्र बताते हैं कि इस समय चंद्र पूजा कर के खीर को चंद्रमा की किरणों में रखना चाहिए। इसके बाद अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को सुबह जल्दी उठकर नहाएं और भगवान से लंबी उम्र की प्रार्थना करने के बाद ही खीर खानी चाहिए।
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शरद पूर्णिमा की रात में चंद्र पूजा और चांदी के बर्तन में दूध-चावल से बनी खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है।
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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Coronavirus: अगस्त में पीक पर पहुंचने के बाद कम होगा कोरोना का असर, शोध में सामने आई जानकारी
विनोद चमोली, अमर उजाला, चंबा (टिहरी) Updated Sat, 27 Jun 2020 01:30 AM IST
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देश में कोरोना वायरस का असर इस साल के अंत तक खत्म होने का गणितीय आकलन किया गया है। एचएनबी गढ़��ाल केंद्रीय विवि के एसआरटी के भौतिकी विभाग ने एसआईआर मॉडल की मदद से जुटाए गए आंकड़ों का गणितीय विश्लेषण करने के बाद अगस्त में कोरोना वायरस के पीक पर पहुंचने के बाद कम होने का अनुमान लगाया है।
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी परिसर बादशाहीथौल के पूर्व निदेशक और भौतिक विज्ञान के प्रो. आरसी रमोला ने ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल का उपयोग करके कोरोना वायरस महामारी पर एक शोध किया है।
एसआईआर मॉडल की मदद से कोरोना वायरस संक्रमण दर, मौत के आंकड़ों और ठीक हुए मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। शोधपत्र को रिसर्चगेट के कोविड-19 अनुसंधान समुदाय की वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है। 
शोध में कोरोना वायरस संक्रमण के 30 जनवरी को मिले पहले मामले से लेकर लॉकडाउन काल के 20 मई तक के आंकड़े लिए गए। अगस्त प्रथम सप्ताह में कोरोना संक्रमितों की संख्या पीक पर पहुंचने के बाद कम होने लगेगी। शोध के आधार पर देशभर से दिसंबर अंत तक कोविड-19 के असर के खात्मे का अनुमान है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में आंकड़ों का स्वरूप बदल भी सकता है, जिससे वायरस के चरम पर पहुंचने और खत्म होने के अनुमानित समय में बदलाव भी हो सकता है।
प्रो. रमोला ने बताया कि कोविड-19 की वैक्सीन के बनने तक सामाजिक दूरी और गाइड लाइन का पालन करने से ही वायरस के प्रसार को रोक सकते हैं। रोकथाम के उपायों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है, जो देश में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल ब्रिटिश वैज्ञानिक कर्माक और मैक्केंडिक ने घनी आबादी क्षेत्र में संक्रामक महामारी का चरम पर पहुंचने से लेकर खात्मा होने तक का पता लगाने के लिए विकसित किया है। मॉडल से पूरी आबादी के तीन तरह के व्यक्तियों की बीमारी के आधार पर गणितीय गणना की जाती है।
पहला अतिसंवेदनशील व्यक्ति, जो संक्रमित नही है, लेकिन संक्रमित हो सकते हैं। दूसरा, संक्रमित व्यक्ति, जिनको यह बीमारी होती है और इसे अतिसंवेदनशील तक पहुंचा सकते हैं। तीसरे, ठीक हुए अथवा मृत व्यक्ति, जो संक्रमित नही हो सकते हैं और दूसरों को बीमारी भी नही पहुंचा सकते हैं। इन आंकड़ों की इस मॉडल में गणितीय विश्लेषण करने के बाद महामारी की भविष्यवाणी की जाती है। 
सार
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के भौतिकी विभाग ने गणितीय विश्लेषण से लगाया अनुमान
एसआईआर मॉडल का उपयोग कर किया गया संक्रमण पर शोध
विस्तार
देश में कोरोना वायरस का असर इस साल के अंत तक खत्म होने का गणितीय आकलन किया गया है। एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी के भौतिकी विभाग ने एसआईआर मॉडल की मदद से जुटाए गए आंकड़ों का गणितीय विश्लेषण करने के बाद अगस्त में कोरोना वायरस के पीक पर पहुंचने के बाद कम होने का अनुमान लगाया है।
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी परिसर बादशाहीथौल के पूर्व निदेशक और भौतिक विज्ञान के प्रो. आरसी रमोला ने ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल का उपयोग करके कोरोना वायरस महामारी पर एक शोध किया है।
एसआईआर मॉडल की मदद से कोरोना वायरस संक्रमण दर, मौत के आंकड़ों और ठीक हुए मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। शोधपत्र को रिसर्चगेट के कोविड-19 अनुसंधान समुदाय की वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है। 
शोध में 20 मई तक के आंकड़े लिए गए
शोध में कोरोना वायरस संक्रमण के 30 जनवरी को मिले पहले मामले से लेकर लॉकडाउन काल के 20 मई तक के आंकड़े लिए गए। अगस्त प्रथम सप्ताह में कोरोना संक्रमितों की संख्या पीक पर पहुंचने के बाद कम होने लगेगी। शोध के आधार पर देशभर से दिसंबर अंत तक कोविड-19 के असर के खात्मे का अनुमान है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में आंकड़ों का स्वरूप बदल भी सकता है, जिससे वायरस के चरम पर पहुंचने और खत्म होने के अनुमानित समय में बदलाव भी हो सकता है।
प्रो. रमोला ने बताया कि कोविड-19 की वैक्सीन के बनने तक सामाजिक दूरी और गाइड लाइन का पालन करने से ही वायरस के प्रसार को रोक सकते हैं। रोकथाम के उपायों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है, जो देश में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
क्या है एसआईआर मॉडल
ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल ब्रिटिश वैज्ञानिक कर्माक और मैक्केंडिक ने घनी आबादी क्षेत्र में संक्रामक महामारी का चरम पर पहुंचने से लेकर खात्मा होने तक का पता लगाने के लिए विकसित किया है। मॉडल से पूरी आबादी के तीन तरह के व्यक्तियों की बीमारी के आधार पर गणितीय गणना की जाती है।
पहला अतिसंवेदनशील व्यक्ति, जो संक्रमित नही है, लेकिन संक्रमित हो सकते हैं। दूसरा, संक्रमित व्यक्ति, जिनको यह बीमारी होती है और इसे अतिसंवेदनशील तक पहुंचा सकते हैं। तीसरे, ठीक हुए अथवा मृत व्यक्ति, जो संक्रमित नही हो सकते हैं और दूसरों को बीमारी भी नही पहुंचा सकते हैं। इन आंकड़ों की इस मॉडल में गणितीय विश्लेषण करने के बाद महामारी की भविष्यवाणी की जाती है। 
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शोध में 20 मई तक के आंकड़े लिए गए
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newswave-kota · 4 years ago
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RTU में ‘आउटकम बेस्ड एजुकेशन’ पर वेबीनार
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न्यूजवेव@ कोटा
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राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में ‘आउटकम बेस्ड एजुकेशन’ पर चल रही तीन दिवसीय वेबीनार के दूसरे दिन राज्य के तकनीकी शिक्षा विभाग की शासन सचिव श्रीमति शुचि शर्मा ने मुख्य अतिथी के रूप में शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि आरटीयू, कोटा द्वारा इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट आदि कासेर्स के कॅरिकुलम को इंडस्ट्री की जरूरत के अनुसार संशोधित किया जाना अच्छा कदम है। इसमें आनंदम का जोड़ा जाना दूरगामी परिणाम देगा । उन्होंने एक्रीडिटेशन के साथ ही एनआईआरएफ रैंकिंग हेतु कदम उठाने का सुझाव दिया।
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Prof.R.A.Gupta, VC आरटीयू के कुलपति प्रो.राम अवतार गुप्ता ने श्रीमती शर्मा द्वारा यूनिवर्सिटी में टीचर्स के पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिये पिछले 8 माह से चल रहे प्रयासों का जिक्र किया। साथ ही यूनिवर्सिटी ��े यूसीई कॉलेज में टीचर्स की नियुक्ति जल्द करने का अनुरोध किया। कुलपति प्रो. गुप्ता ने कहा कि आरटीयू में शिक्षकों के प्रमोशन अथवा नई नियुक्ति होने पर वेतन के लिये राज्य सरकार से फंड नहीं मांग रहे हैं। यदि इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर व प्रोफेसर सहित सभी शैक्षणिक पदों पर नियुक्तियां कर दी जाये तो राजस्थान में उच्च तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता बढेगी। इस मौके पर डीन प्रोफेसर प्रो. अनिल के माथुर ने आरटीयू के बारे में जानकारी दी। विषय विशेषज्ञ प्रोफेसर संजीव सॉफ्ट ने हर विषय की कोर्स आउटकम की गणना को एक प्रक्रिया के माध्यम से समझाया। 100 से अधिक प्रतिभागियों ने इस ऑनलाइन वेबिनार में हिस्सा लिया तथा 40 से अधिक ने अलग-अलग शहरों में यूट्यूब पर लाइव देखा। सुबह के सत्र में प्रोफेसर प्रीतम सिंह ग्रोवर ने आउटकम बेस्ड एजुकेशन की बारीकियां बताई। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि छात्र को पहले से पता हो उसका मूल्यांकन किस आधार पर किया जाएगा। इससे छात्र की सीखने में रुचि बढेगी और उसका सही मूल्यांकन भी हो पाता है। याद दिला दें कि आउटकम बेस्ड एजुकेशन न केवल उच्च तकनीकी शिक्षा में लागू की जा रही है बल्कि सीएसईबी भी स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम को जोडने के लिये प्रयासरत है। Read the full article
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abhay121996-blog · 3 years ago
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भूमि संरक्षण के लिए दुनिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी को Divya Sandesh
#Divyasandesh
भूमि संरक्षण के लिए दुनिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी को
बीकानेर। भूमि संरक्षण से सम्बंधित दुनिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय अवार्ड ‘लैंड फॉर लाइफ’ के लिए इस बार बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी को चुना गया है। यह पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (यूएनसीसीडी) की ओर से हर दो साल के अंतराल पर दिया जाता है। ज्याणी ने पारिवारिक वानिकी अवधारणा विकसित की है जिसके लिए उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। संस्‍था के एक्���ीक्यूटिव सेक्रेटरी इब्राहिम थियॉ ने मंगलवार को बॉन में इसकी घोषणा की। 
यह खबर भी पढ़ें: उत्तरी कमान ने मनाया अपना स्थापना दिवस, जनरल वाईके जोशी ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि
श्रीगंगानगर जिले की रायसिंहनगर तहसील के गांव 12 टीके के मूल निवासी व वर्तमान में बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी पिछले दो दशक से पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थल में पेड़ को परिवार का हिस्सा बनाकर जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं। इस बेहद प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भूमि संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही दुनियाभर से संस्थाओं व व्यक्तियों, सरकारों, स��युक्त राष्ट्र संघ के संगठनों, अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मनोनयन किया जाता है। इसके बाद यूएनसीसीडी का अंतरराष्ट्रीय निर्णायक मंडल अंतिम फैसला लेता है। 
वर्ष 2021 के इस पुरस्कार के लिए पूरी दुनिया से 12 लोगों, संस्थाओं को फाइनलिस्ट घोषित किया गया। आज विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोधी दिवस पर कोस्टा रिका में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में इस पुरस्कार के लिए प्रोफेसर ज्याणी के नाम की घोषणा की गयी। हालांकि इस बार अंतिम 12 नामों में भारत से ज्याणी के अलावा सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन और दुनियाभर में चर्चित उनके कार्यक्रम रेली फॉर रीवर को भी शामिल किया गया था लेकिन अंतिम तौर पर ज्याणी के कार्यों को तरजीह देते हुए उनके नाम पर मुहर लगाई गई है। आज इस पुरस्कार की घोषणा हुई है और अगस्त के आखिर में चीन में आयोजित होने वाले विशेष समारोह में ज्याणी को इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा। साथ ही पुरस्कार समारोह में प्रो ज्याणी का विशेष भाषण होगा। 
ज्याणी ने अब तक कराये हैं 25 लाख पौधरोपण यूएनसीसीडी ने ज्याणी की पारिवारिक वानिकी अवधारणा को वनीकरण का अनूठा विचार बताते हुए इसे पारिस्थिति‍की अनुकूल सभ्यता के विकास के एक प्रभावी तरीके के तौर पर उल्लेखित किया है। उन्होंने 15 हजार से अधिक गांवों के दस लाख से ज्यादा परिवारों को जोड़ते हुए 25 लाख पौधरोपण करवाए हैं। राजकीय डूंगर कॉलेज परिसर में ही ज्याणी ने 6 हेक्टेयर भूमि पर 3000 पेड़ों का एक जंगल खड़ा कर दिया है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पैनल के फार्मूले के अनुसार गणना करने पर आज की तारीख में 1 अरब 8 करोड़ रुपये मूल्य की ऑक्सीजन उत्पन्न कर रहा है। 
ज्याणी का कहना है कि संस्थागत वन मानव निर्मित जंगल की एक नई श्रेणी है जो विद्यार्थियों व स्थानीय समुदाय को सतत वन प्रबंधन के तरीके सिखाती है और पारिवारिक वानिकी के जरिए उन्हें हैड, हैंड व हार्ट तीनों ही तरह से पेड़ व पर्यावरण से जोड़ती है। यह वनीकरण के साथ-साथ क्रियात्मक पर्यावरणीय शिक्षा और जलवायु सशक्तिकरण की एक प्रक्रिया है। मैंने इस जंगल को शांतिदूत गांधी को समर्पित किया है और इस मॉडल को आगे बढ़ते हुए स्कूली शिक्षकों व ग्रामीण युवाओं के सहयोग से पश्चिमी राजस्थान में 170 गांधी संस्थागत वन विकसित करवा दिए हैं यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
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manishajain001 · 5 years ago
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संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर सरकार असम में क्या कर रही है और उसकी क्या योजना है, इसे समझने के लिए बिहार का रुख करना अच्छा होगा। बिहार में नीतीश कुमार ने दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए इसमें महादलित का एक वर्ग बनाया था, जिससे इसका सियासी फायदा उठाया जा सके। केंद्र की नरेंद्र मोदी और असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकारें असम में कुछ ऐसा ही करने जा रही हैं।
एनआरसी के देशव्यापी विरोध में असम का उदाहरण दिया जाता है। वहां एनआरसी की प्रक्रिया में 19 लाख लोग इससे बाहर रह गए हैं। अब इन्हें साबित करना है कि वे वास्तव में भारत के नागरिक हैं। अनुमान है कि इसमें 5 लाख से ज्यादा हिंदू हैं। माना जाता है कि इन्हें सीएए के तहत नागरिकता दे दी जाएग���। मुसलमानों को चूंकि सीएए का फायदा मिलना नहीं है, इसलिए उन्हें अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
इस बीच सरकार ने अपना नया पैंतरा अपनाया है। वह मुसलमानों के बीच दरार डालकर इस आरोप से मुक्त होना चाहती है कि उसका यह कदम मुस्लिम-विरोधी है। सरकार कुछ जातियों के मुसलमानों को एनआरसी प्रक्रिया से बाहर करके अपने बचाव का रास्ता खोज रही है। इसी आधार परअसम में कुछ मुसलमान जातियों का सर्वेक्षण कराने की तैयारी की जा रही है। लेकिन यह फॉर्मूला कितना कारगर रहेगा, इस पर निगाह रखने की जरूरत है।
असम के अल्पसंख्यक कल्याण और विकास विभाग ने चार समुदायों की जनगणना करने की योजना की घोषणा की है, जिन्हें मोटे तौर पर 'असमिया मुसलमान' कहा जाता है। ये हैं गोरिया, मोरिया, देसी और जुलाह। इस सप्ताह इन समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक के बाद, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री रंजीत दत्त ने कहा कि इससे इन समुदायों के विकास में मदद मिलेगी और 'गोरिया, मोरिया, देसी और जुलाह विकास निगम' की स्थापना भी की जाएगी।
पिछले वर्ष असम के बजट में समुदाय के ‘समग्र विकास’ के साथ-साथ ‘सामाजिक-आर्थिक जनगणना’ के लिए ‘स्वदेशी मुसलमानों के लिए विकास निगम’ की स्थापना का जिक्र भी था। 6 फरवरी, 2020 को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने स्वदेशी मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के बारे में बैठक बुलाई। बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि खिलोनजीया (स्वदेशी) शब्द विवादास्पद था और इसे चार विशिष्ट समुदायों के नामों से बदल दिया जाएगा।
बहरहाल, कौन से समुदाय स्थानीय हैं और कौन नहीं, इसके दस्तावेजी साक्ष्य बहुत कम हैं और परिभाषाएं अस्पष्ट, लेकिन समाज ने पारंपरिक रूप से गोरिया, मोरिया और देसी को स्वदेशी असमिया की परिभाषा के तहत रखा है। वैसे असम में मुसलमानों का इतिहास काफी पुराना है। इतिहास की प्रोफेसर और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में शांति अध्ययन पीठ की अध्यक्��� यास्मीन सैकिया कहती हैं कि मौखिक परंपराओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और भाषाओं को ध्यान में रखते हुए बात की जाए तो कहा जा सकता है कि मुस्लिम कम से कम 600-700 साल पहले असम में बस गए थे। इस संभावना से भी इनकार नहीं कि मुस्लिम अहोम साम्राज्य से भी पहले से असम में रह रहे हों।
बख्तियारुद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद असम में 13वीं शताब्दी के शुरू में मुस्लिम बस्तियों के प्रमाण मिले हैं। अखिल असम गोरिया-मोरिया देसी परिषद के महासचिव अजीजुल रहमान कहते हैं कि जिसे हम अबगोरिया कहते हैं, उसकी जानकारी 13 वीं शताब्दी के अहोम राजाओं के समय भी मिलती है। कई मुस्लिम आक्रमणकारी सेनाओं के साथ आए और युद्ध में पकड़े गए। जब उन्हें रिहा किया गया, तो वे मुख्यधारा के समाज के साथ घुलमिल गए। इसलिए आज भी, उनकी अधिकांश सांस्कृतिक परंपराएं असमिया रीति-रिवाजों से मेल खाती हैं। एडवर्ड गैटने की “हिस्ट्री ऑफ असम” पुस्तक में गोरिया समाज के बारे में कहा गया है कि यह बंगाल के ही गौड़ इलाके में रहता था।
रहमान का कहना है कि मोरिया 1500 ईस्वी के आसपास असम आए। वे असाधारण रूप से दक्ष कारीगर थे, विशेष रूप से बेल मेटल के निर्माण कार्य में वे पारंगत थे। प्रो. सैकिया का मानना है कि जुलाह मुस्लिम 'बिहारऔर यूपी' के लोग थे, जो ब्रिटिश शासन के दौरान रेलवे विस्तार के साथ असम आए थे। प्रो. सैकिया कहते हैं, "जब तिनसुकिया और लिडो के लिए गाड़ियां आईं, तो तम्बू बनाने वाले, रस्सी बनाने वाले, बुनकर, मशीन ड्रिलर के रूप में जुलाह मुस्लिम आए।' हालांकि, मंत्री दत्त ने साफ किया है कि जनगणना केवल उन जुलाह लोगों की होगी जो 'चाय जनजाति के हैं और मुख्य रूप से गोलाघाट और जोरहाट में रहते हैं।'
गोरिया, मोरिया और जुलाह खास तौर पर ऊपरी और मध्य असम में बसे थे, जबकि देसी निचले असम से नाता रखते हैं, जो अविभाजित गोवालपारा जिला हुआ करता था। कहा जाता है कि उनके पूर्वजों को 13वीं शताब्दी की शुरुआत में कोच राजबंशी साम्राज्य के काल में धर्मांतरित किया गया था। पी बी कॉलेज, धुबरी में सहायक प्रोफेसर परवीन सुल्ताना का मानना है, “हम जानते हैं कि अली मेच नाम के एक आदिवासी सरदार ने इस्लाम अपनाया था। उनके अनुयायी भी धर्मांतरित हुए। ये लोग देसी भाषा बोलते हैं, जो कोच राजबंशी की भाषा से काफी मिलती-जुलती है, और इनकी आबादी लगभग 20 लाख है।” लेकिन समस्या यह है कि दस्तावेजी सबूतों की कमी के कारण कई असमिया मुस्लिमों के बारे में यह कहना मुश्किल होता है कि वे किस गुट से अपने नाते को प्रमाणित कर सकते हैं।
जनगणना के दायरे से मिया मुस्लिम समुदाय को अलग रखा गया है- जिसमें पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के प्रवासियों के वंशज शामिल हैं। 1826 में असम को ब्रिटिश भारत में शामिल किए जाने के बाद, अंग्रेजों ��े 1850 के दशक से संयुक्त बंगाल प्रांत के प्रवासियों को असम में बसाया। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से लगातार सीमा पार से लोग आए और दिक्कत यह है कि जो मुसलमान यहां अंग्रेजों के समय से ही रह रहे हैं, उन्हें भी अक्सर अवैध प्रवासी मान लिया जाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि दक्षिणी असम की बराक घाटी के मुसलमानों के बारे में सरकार की क्या योजना है। इस क्षेत्र में अविभाजित बंगाल के सिलहट जिला (बांग्लादेश) का एक बड़ा हिस्सा शामिल है। असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अध्यक्ष सैयद मुमिनुल ऐवल ने कहा कि मुस्लिमों के इन वर्गों पर आगे चर्चा की जानी है।
2011 की जनगणना के अनुसार, असम की 3.12 करोड़ जनसंख्या में मुसलमानों की तादाद एक तिहाई (34.22%) है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि मुसलमानों में सबसे बड़ा समूह मिया मुसलमान है। गुवाहाटी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त सांख्यिकी प्रोफेसर अब्दुल मन्नान का कहना है, “प्रत्येक उप-समूह के संख्यात्मक आकार का अनुमान लगाने के लिए एक गहन अध्ययन की आवश्यकता है। ऐसा कोई सर्वेक्षण अभी तक नहीं किया गया है।”
इसे समझा भी जा सकता है, क्योंकि जनगणना के आंकड़ों से यह तो पता चल जाता है कि किस जिले में किस धर्म के कितने लोग हैं, लेकिन इनमें बांग्लाभाषी मुसलमान कितने हैं और असमिया भाषी कितने, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। वैसे, खास तौर पर निचले असम में बांग्लाभाषी मुसलमानों की संख्या असमिया भाषी मुसलमानों की तुलना में अधिक है, इसे देखा-महसूस किया जा सकता है। ऐवल कहते हैं कि सर्वेक्षण के काम को आगे बढ़ाने के लिए इसके तौर-तरीकों पर जल्द ही विचार-विमर्श किया जाएगा। जहां तक गोरिया और मोरिया की बात है, उनकी सामाजिक पहचान उस भाषा से निर्धारित की जा सकती है जो वे बोलते हैं और जिन इलाकों में रहते हैं।
बहुतों को नहीं लगता कि यह संभव है। चरचापोरी साहित्य परिषद के अध्यक्ष हाफिज अहमद कहते हैं, “आप झूला समुदाय को ही लें। वे भी बुनकर हैं। लेकिन इनमें कुछ स्वदेशी हैं और कुछ प्रवासी; कुछ असमिया बोलते हैं तो कुछ बांग्ला। ऐसी स्थिति में आप उनकी गणना कैसे और किस खाने में करेंगे? ” वह अपनी बात भी करते हैं कि, 'पिछले आर्थिक सर्वेक्षणों में मैं अपने परिवार को झूला के रूप में सूचीबद्ध करता रहा हूं क्योंकि मेरे पूर्वज बुनकर थे, लेकिन मैं भी बांग्लाभाषी मिया समुदाय से ताल्लुक रखता हूं - इसलिए मैं इस जनगणना में कहां खड़ा हूं?'
सुल्ताना ने भी कहा: “उदाहरण के लिए देसी समुदाय एक धार्मिक-भाषाई समुदाय है। यह एक जातीय समुदाय नहीं है। धुबरी में अधिकांश मुस्लिम, जिनमें मिया समुदाय भी शामिल है, वे आपस में ज्यादातर देसी में ही बातचीत करते हैं। ऐसी स्थिति में आप उन्हें कैसे ��लग करते हैं? इसके अलावा एक और स्थिति आती है जब दो समुदायों के बीच वैवाहिक संबंध बनते हैं। ऐसे विवाहों से जन्म लेने वाले बच्चों का क्या होगा? मान लीजिए कि एक वैसे मुस्लिम समुदाय जिसे देसी माना गया हो और किसी वैसे मुस्लिम समुदाय, जिसे विदेशी माना गया हो, के बीच वैवैहिक संबंध बनते हैं तो उस जोड़ी से होने वाले बच्चों को देसी माना जाएगा या विदेशी?
असम में लोगों की निगाहें 1985 के असम समझौते के अनुच्छेद 6 पर टिकी हैं, जो यह कहता हैः “असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए जो भी संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक उपाय उपयुक्त हो सकते हैं, प्रदान किए जाएंगे।” केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त समिति रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रही है जिसमें "असमिया लोगों" की परिभाषा को बदला जाएगा, लेकिन इससे कितनी स्पष्टता आएगी और कितनी दरार पैदा होगी, यह देखने की बात होगी। वैसे, ऐवल का मानना है कि "जनगणना से स्वदेशी असमिया मुसलमानों को न केवल अनुच्छेद 6 से लाभ होगा, बल्किअन्य योजनाओं में भी मदद मिलेगी।"
गोरिया-मोरिया देसी परिषद ने इसका स्वागत किया है। महासचिव रहमान का दावा है कि यह एक "पहचान संकट" को समाप्त करेगा। रहमान का मानना है कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि असम का आम मुसलमान जो यहां सैकड़ों साल से रह रहा है, उसकी पहचान का संकट खत्म होगा। आज ऐसे भी मुसलमान को बांग्लादेशी मान लिया जाता है, लेकिन तब यह बात साफ हो जाएगी कि कौन देसी और कौन विदेशी। लेकिन यहां भी बड़ा सवाल यही है कि पहचान का यह मसला कहीं सामाजिक ताने-बाने में दरार पैदा करने का कारण न बन जाए।
सुल्ताना ने कहा कि अगर जनगणना किसी समुदाय की संस्कृति को रिकॉर्ड करने और संरक्षित करने के इरादे से की जाती है, तो यह 'अच्छा हो सकता है।' उदाहरण के लिए, अनुसंधान, अनुदान आदि के माध्यम से समुदाय के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, क्योंकि लोग देश के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। लेकिन उन्हें इसका इस्तेमाल एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ नहीं करना चाहिए। जबकि मोदी सरकार के इस फैसले से इस बात की आशंका तो है ही कि इससे मुसलमानों में ही एक ऐसा समुदाय तैयार होगा जो दूसरे के खिलाफ होगा।
प्रो. सैकिया भी मोदी सरकार के इस कदम को लेकर संशकित हैं। वह कहते हैं कि तात्कालिक रूप से लोग सोच सकते हैं कि यह एक अच्छा विचार है और देसी मुसलमानों के लिए पहचान का संकट खत्म हो जाएगा, लेकिन लंबे समय में इसका परिणाम नकारात्मक ही होगा। उनका मानना है कि 'एक ऐसे समुदाय के लिए जिसने खुद को असम का मुसलमान माना है, उसे छोटे-छोटे समुदायों में बांट देने से लोगों के मन में असुरक्षा की भावना भी पैदा होग���।'
हाफिज अहमद कहते हैं कि सरकार का यह कदम मिया समुदाय की पीठ दीवार से लगा देने जैसा है। वह कहते हैं, 'बांग्लाभाषी असमिया 19वीं शताब्दी से असम में रह रहा है। अगर सरकार का इरादा उसके विकास में सहायता करना है तो यह योजना उन बांग्लाभाषी मुस्लिमों के लिए क्यों नहीं है जो चरक्षेत्रों में रहते हैं?' जाहिर है, मोदी सरकार की योजना असम के मुसलमानों में दरार पैदाकर एनआरसी पर अपने स्टैंड को वाजिब ठहराने का है। लेकिन इस क्रम में वह समाज में दरार पैदा कर रही है जिसके आने वाले समय में खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं।
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jodhpurnews24 · 5 years ago
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जेएनवीयू के 57 साल के इतिहास में पहली बार निर्दलीय अध्यक्ष, रविंद्रसिंह 1294 वोट से जीते
जोधपुर। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में पहली बार निर्दलीय रविंद्रसिंह भाटी ने चुनाव जीत इतिहास बना दिया। एनएसयूआई हैट्रिक लगाने से चूक गई। वह दूसरे नंबर पर रही। एबीवीपी ने लगातार तीन चुनाव में हार की हैट्रिक बनाई। इससे संगठन के प्रत्याशी चयन पर सवालिया निशान लग गए। यह चुनाव जीतने वाले रविंद्रसिंह एबीवीपी से ही चुनाव लडऩा चाहते थे लेकिन जब संगठन ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया तो उन्होंने ने निर्दलीय ताल ठोंकी। एनएसयूआई के हनुमान तरड़ ने अच्छा मुकाबला किया पर 1294 वोटों से हार गए। कुल 10,987 वोट में से 4,558 वोट रविंद्रसिंह भाटी को मिले। वहीं हनुमान तरड़ ने 3264 वोट हासिल किए। एबीवीपी के प्रत्याशी त्रिवेंद्रपाल सिंह को 2218 वोट मिले। रविंद्रसिंह भाटी दो साल से सक्रिय थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं देकर नए चेहरे त्रिवेंद्रपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया। 2018 में एनएसयूआई के सुनील चौधरी ने एबीवीपी के मूलसिंह को तथा 2017 में एनएसयूआई की कांता ग्वाला ने एबीवीपी के राजेंद्र सिंह को हराया था। एबीवीपी ने वर्ष 2016 में जीत की हैट्रिक बनाई थी, जब कुणाल सिंह भाटी छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। वहीं उपाध्यक्ष पद पर सुशीला, महासचिव पर एनएसयूआई के शुभम देवड़ा, संयुक्त महासचिव पर एबीवीपी के सुनील विश्नोई जीते।
एबीवीपी के जिला संयोजक अविनाश खारा ने कहा कि रविंद्र सिंह भाटी एबीवीपी का ही कार्यकर्ता है और यह हमारी त्रुटि है कि हमने उन्हें टिकट नहीं दिया। रविंद्र को जीत की बधाई। अब हम उसके साथ हैं और पूरे साल कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेंगे। वहीं एनएसयूआई जिलाध्यक्ष दिनेश परिहार ने कहा कि छात्रसंघ चुनाव पूरी मजबूती के साथ लड़े और हमें हराया गया है। आखिरी राउंड में धांधली हुई है। इसका हम विरोध दर्ज करवा चुके हैं। जरुरत पड़ी तो न्यायालय में चुनौती देंगे।
बता दे कि जेएनवीयू की स्थापना 1962 में हुई, तब से 1976 तक चुनाव हुए। इनमें 1970 तक कोई भी संगठन प्रत्याशी को समर्थन नहीं देता था। लेकिन वर्ष 1971 से 1976 तक विद्यार्थी संगठन की ओर से प्रत्याशी को समर्थन दिया जाता था। इसके बाद 1989 से फिर चुनाव शुरू हुए और एबीवीपी के जालमसिंह रावलोत अध्यक्ष बने। तब से वर्ष 2004 तक कुछ प्रत्याशी इन मुख्य संगठनों के अलावा छात्र संघर्ष समिति, किसान छात्रसंघ व संयुक्त मोर्चा के प्रत्याशी बने और जीते। वर्ष 2005 से 2009 तक चुनाव नहीं हुए और वर्ष 2010 से अब तक कोई निर्दलीय प्रत्याशी छात्रसंघ अध्यक्ष नहीं बना���
राउंड वाइज हुई मतगणना
अध्यक्ष पद के लिए राउंड वाइज मतगणना हुई। प्रथम राउंड के परिणामों में एबीवीपी के त्रिवेंद्रपाल सिंह ने बढ़त बनाई। इसमें उसे 1372 मत मिले। इसके अलावा अजय सिंह 55, हनुमान तरड़  241, मनोज पंवार 1, रविंद्रसिंह भाटी 298, सुधीर विश्नोई को 4 वोट मिले। दूसरे राउंड में भी एबीवीपी का दबदबा कायम रहा लेकिन कुल वोटों की गणना के हिसाब से निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने बढ़त बनाई। इस राउंड में अजय सिंह को 244, हनुमान तरड़  858, मनोज पंवार 5, रविंद्रसिंह भाटी 1202, सुधीर विश्नोई 24 और त्रिवेंद्रपाल सिंह को 1575 वोट मिले। तीसरे राउंड में निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने बढ़त बनाई। इस राउंड में अजय सिंह 379, हनुमान तरड़ 1526, मनोज पंवार 21,रविंद्रसिंह भाटी 2140, सुधीर विश्नोई 40 और त्रिवेंद्रपाल सिंह को 1683 मत मिले। चौथे राउंड के परिणामों में भी निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्रसिंह भाटी अपनी बढ़त बरकरार रखे हुए थे। इस राउंड में अजय सिंह 536, हनुमान तरड़ 2205, मनोज पंवार 30, रविंद्रसिंह भाटी 2984, सुधीर विश्नोई 59 और त्रिवेंद्रपाल सिंह को 1924 वोट मिले। वहीं पांचवे राउंड में रविन्द्र सिंह को 3970, त्रिवेंद्र सिंह  2026, हनुमान तरड़  2887, अजयसिंह 732, सुधीर विश्नोई 74 और  मनोज पंवार को 45 वोट मिले।
इन्होंने भी हासिल की जीत
इससे पहले दोपहर बाद यहां धीरे-धीरे विभिन्न संकायों के क्लास रिप्रेजेन्टेटिव के परिणाम सामने आने लग गए थे। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से सबद्ध कमला नेहरू महाविद्यालय में प्रियंकासिंह नरूका छात्र संघ अध्यक्ष निर्वाचित की गईं। वहीं दीपिका उपाध्यक्ष, खुशबू महासचिव और अनु कंवर संयुक्त महासचिव निर्वाचित हुईं। कमला नेहरू कॉलेज निदेशक डॉ. कैलाश कौशल ने उन्हें विजयी होने का प्रमाण पत्र प्रदान किया। कमला नेहरू महिला महाविद्यालय के परिणामों में प्रथम वर्ष में संगीता चौधरी, सैकेंड ईयर में पूजा गोस्वामी व थर्ड ईयर में भानु क्लास रिप्रेजेन्टेटिव पद के लिए चुनी गई। वाणिज्य संकाय के परिणामों में शुभम जैन, दिव्यांशु चौहान, लव्यांश व मोहित गहलोत क्लास रिप्रेजेन्टेटिव पद के लिए चुने गए। मतगणना स्थल पर कॉमर्स डीन प्रोसेफर जसराज बोहरा ने उन्हें शपथ दिलवाई। वहीं विधि संकाय के परिणामों में ध्रुव गहलोत, उदित स्वामी व दीपिका भाटी क्लास रिप्रेजेन्टेटिव पद के लिए चुने गए। सांयकलीन अध्ययन केंद्र के विभिन्न परिणामों में जनरल सेक्रेट्री नटवर सिंह, ज्वाइंट सेके्रट्री श्रवणसिंह व क्लास रिप्रेजेन्टेटिव पद के लिए हिम्मत सिंह पद पर चुने गए है। मतगणना स्थल पर विजेताओं के बाहर आने पर विद्यार्थियों ने उनको पुष्पमाला पहना कर स्वागत किया। इसी तरह देर शाम तक एपेक्स पदों के लिए मतगणना जारी थी। मतगणना शुरू होने के बाद जहां संभाग के अन्य महाविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव के परिणाम जारी हो चुके थे तो वहीं जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में केंद्रीय छात्रसंघ व अपेक्स चैनल के प्रत्याशियों की मतगणना का पहला राउंड भी क्लियर नहीं हुआ थ। प्रत्याशियों ने भी यहां धीमे तरीके से मतगणना करने का आरोप लगाया। देर शाम एनएसयूआई के महासचिव पद के प्रत्याशी शुभम देवड़ा की जीत घोषित की गई।
240 मतपेटियां खोली
मुख्य ��िर्वाचन अधिकारी प्रो. रवि सक्सेना ने बताया कि जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में मंगलवार को मतदान के बाद सभी 40 मतदान बूथों से 240 मतपेटियों को एकत्रित करके एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में बनाए गए स्ट्रॉन्ग रूम में कड़ी सुरक्षा के बीच रखवाया गया था। मतदान के बाद सभी 40 मतदान केंद्र��ं से 240 मतपेटियों को एमबीएम कॉलेज में पुलिस की कड़ी सुरक्षा में रख दिया गया था। यहां सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। इसमें से 160 मतपेटी एपेक्स के चारों पदों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त महासचिव पद की थी। 32 मतपेटी कमला नेहरू कॉलेज और 16 मतपेटी सायंकालीन अध्ययन संस्थान में एपेक्स पदों की थी। कक्षा प्रतिनिधियों की 32 मतपेटियां थी। यहां आज सुबह 11 बजे मतगणना शुरू हुई। एपेक्स पदों को छोडकर शेष सभी पदों के लिए मतगणना संबंधित संकायों में हुई। कमला नेहरु कॉलेज और सांयकालीन अध्ययन संस्थान के पदों की मतगणना संबंधित संकायों में हुई। कक्षा प्रतिनिधियों के लिए कला, वाणिज्य, इंजीनियरिंग, विधि और विज्ञान संकाय में मतगणना हुई। इससे पूर्व सुबह एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से मतपेटियों को संबंधित संकायों के लिए रवाना कर दिया गया था।
भारी पुलिस जाब्ता तैनात
छात्रसंघ चुनाव की मतगणना को लेकर पुलिस ने सुरक्षा के खास बंदोबस्त किए। इस दौरान पुलिस के करीब एक हजार अधिकारी व जवान तैनात किए गए। जेएनवीयू के ओल्ड कैम्पस, न्यू कैम्पस, केएन महिला कॉलेज और एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज के साथ ही जेएनवीयू से संबंध महाविद्यालयों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए। सभी संकायों में पुलिस जाब्ता तैनात रहा। पुलिस आयुक्त, डीसीपी और सहायक पुलिस आयुक्त कार्यालयों में लगे पुलिसकर्मियों को भी ड्यूटी में लगाया गया। कानून व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से पुलिस ने माकूल बंदोबस्त किए। सभी मतगणना केन्द्र सुरक्षा के कड़े पहरे में रहे। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात रहा। सभी केन्द्रों के साथ ही हॉस्टल आदि जगहों पर भी अधिकारी व जवान तैनात रहे।
छात्रों ने की हूटिंग
मतगणना स्थलों के बाहर सुबह से ही प्रत्याशियों के समर्थक छात्र-छात्राआें की जमावड़ा शुरू हो गया था। उनके बीच कई बार अपने प्रत्याशियों व पार्टियों के समर्थन में नारेबाजी व हूटिंग चलती रही। इस दौरान वहां कई बार छात्र गुट आमने-सामने भी हुए लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया। जीते हुए प्रत्याशी जब मतगणना स्थल से बाहर आए तब उनके समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया और नारेबाजी करते हुए विजय जुलूस निकाला। इन छात्र-छात्राआें को नियंत्रित करने पर पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ी।
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साईकिल में दो पहिया लोहिया और अंबेडकर के विचारों के हैं: अखिलेश दिल्ली फतेह करने का ख्वाब लेकर निकले समाजवादियों ने सुहाने मौसम में लक्ष्य प्राप्त कर लिया। गाजीपुर और सहारनपुर से रवाना हुई साईकिल यात्रा का आज जंतर-मंतर पर भव्य समापन हुआ।  समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, सांसद प्रो. रामगोपाल यादव और लोकप्रिय युवा सांसद धर्मेन्द्र यादव सहित तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। मुलायम सिंह यादव आज पूरी तरह बदले नजर आये। उन्होंने साईकिल यात्रा आयोजित करने पर बधाई देते हुए कहा कि लड़कियों को आगे नहीं आने दिया, यह शिष्टाचार नहीं है, लड़कियों को सम्मान देने का समाजवादियों का इतिहास है। उन्होंने कहा कि महिला���ं का नेतृत्व बढ़ाइए, लड़कियाँ आगे आने से ही पार्टी आगे बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का आलम यह है कि जमीनों पर कब्जे हो रहे हैं, इसीलिए इतनी भीड़ जुटी है। उन्होंने कहा कि गरीबों और बीमारों की मदद कीजिये, मधुर भाषा बोलें, कोई ऐसा काम न करें, जिससे छवि खराब हो। उन्होंने कहा कि मेरी इच्छा थी कि समाजवादी पार्टी कभी बूढ़ी न हो, यहाँ युवाओं को देख कर उन्हें खुशी हो रही है। बोले- आप सभी को आशीर्वाद देते हैं कि आप सब नेता बनें। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से बात की और कहा कि काम नहीं दे सके तो, पन्द्रह लाख रुपया दो, हर साल तीन-तीन लाख ही दे दो तो, पांच साल में 15 लाख हो जायेंगे पर, झूठ बोल कर सरकार बना ली। उन्होंने कहा कि सपा की सरकार में उन्होंने नौकरियां दीं और बेरोजगारों को भत्ता दिया। समाजवादी जो कहते हैं, वही करते हैं। उन्होंने सपा प्रत्याशियों को जिताने का आह्वान किया। अखिलेश यादव ने कहा कि नेता जी के आने से जितनी ऊर्जा मिली है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने आश्वस्त किया कि नेता जी का निर्देश महिलाओं को आगे लाकर पूरा किया जायेगा। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि वे अपनी पत्नी को लोकसभा भेज चुके हैं, इसलिए उन पर आरोप नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा कि साईकिल में एक पहिया लोहिया जी के विचारों का है और दूसरा पहिया डॉ. अंबेडकर के विचारों का है। उन्होंने नोटबंदी को लेकर एक बार फिर सवाल उठाये। किसानों की आत्म हत्या और व्यापार बंद होने का मुद्दा उठाया। बेरोजगारी की बात की। उन्होंने कहा कि सरकार से सवाल करो तो, कहा जाता है कि पकौड़े बेचो और नाले में पाइप लगा लो। उन्होंने कहा कि सपा नौजवानों की पार्टी है लेकिन, गरीबों को सर्वाधिक भरोसा समाजवादी पार्टी पर ही है। ��न्होंने विकास किया, तमाम सुविधायें दीं लेकिन, आज गन्ना किसान दुखी है, उनका रुपया बकाया है। सरकार से कहो तो, मुख्यमंत्री कहते हैं कि ज्यादा गन्ना होने से सुगर होती है, हनुमान चालीसा पढ़ने से बंदर भाग जाते हैं। उन्होंने नियुक्तियों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अस्पताल और थानों में जाति पूछी जा रही है। बोले- सात-आठ जिलों में ही हजारों बच्चे मर गये, इसके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि विकास यात्रा, सामाजिक न्याय यात्रा और लोकतंत्र बचाओ यात्रा यहीं नहीं रुकेगी, यह चलती रहेगी। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय तभी संभव है, जब जाति के आधार पर गणना हो। (गौतम संदेश की खबरों से अपडेट रहने के लिए एंड्राइड एप अपने मोबाईल में इन्स्टॉल कर सकते हैं एवं गौतम संदेश को फेसबुक और ट्वीटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं, साथ ही वीडियो देखने के लिए गौतम संदेश चैनल को सबस्क्राइब कर सकते हैं)
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shaileshg · 4 years ago
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(अनिरुद्ध शर्मा) वैज्ञानिकों ने हिमाचल की रिवालसर झील की तलहटी के नमूनों की जांच से 3200 सालों में मानसून के पैटर्न का पता लगाया है। जिन कालखंड में मौसम गर्म रहा, उस दौरान अच्छी बारिश हुई। ठंडक बढ़ने से मानसून कमजोर हुआ। इस स्टडी में 4 कालखंडों में मानसून की गणना की गई है। ये चार कालखंड रोमन वार्म पीरियड, मिडिवल क्लाइमेट एनाबेली और लिटिल आइस पीरियड और करेंट वार्म पीरियड है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं की इस स्टडी के मुताबिक रोमन वार्म पीरियड में (1200 ईसा पूर्व से लेकर 450 ईस्वी) मानसून अच्छा रहा। 450 ईस्वी से 950 ईस्वी तक कम बारिश और सूखे का लंबा दौर चला। मिडिवल क्लाइमेट एनाबेली (950 से 1350 ईस्वी तक) में मानसून अच्छा रहा। लेकिन 1350 से 1600 ईस्वी तक यानी लिटिल आइस पीरियड में फिर कमजोर पड़ा। इसके बाद करेंट वार्म पीरियड में मानसून सामान्य रहा।
करेंट वार्म पीरियड में एक्स्ट्रीम इवेंट की घटनाएं बढ़ जाएंगी। रिसर्च के मुख्य लेखक प्रो. अनिल कुमार गुप्ता बताते हैं कि इस स्टडी के लिए झील के बीचोबीच जहां पानी की गहराई 6.5 मीटर थी, वहां सेपिस्टन की मदद से 15 मीटर मोटी सतह का नमूना लिया गया। 14 नमूनों की रेडियोकार्बन डेट्स 200 से लेकर 2950 वर्ष पूर्व की तय की। नमूनों के ऑर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन व कार्बन आइसोटोप्स रेश्यो के वैल्यू की गणना से पता लगाया कि कब कितनी बारिश हुई।
मानसून का अर्थव्यवस्था और व्यापारिक गतिविधियों से सीधा संबंध
मानसून का अर्थव्यवस्था, साम्राज्यों और व्यापारिक गतिविधियों के विस्तार में सीधा संबंध रहा हैै। रोमन वार्म पीरियड के दौरान ��ानसून अच्छा रहा। उस वक्त भारत में मौर्य वंश था। कृषि का विस्तार हुआ। कस्बे और शहर बने। व्यापारिक केंद्र विकसित हुए। कारोबार का विस्तार यूरोप, मेसोपोटामिया, मिस्र और अफ्रीकी तटों तक पहुंचा। इसे स्वर्णिम युग कहा जाता है।
450 से 950 ईस्वी में कमजोर मानसून रहा। गुप्त वंश का पतन हुआ। 1400 से 1600 के बीच मानसून 3200 वर्षों में सबसे कमजोर रहा, तब भारतीय महाद्वीप में यूरोपीय यात्री पहुंचे। अरब और अफगानियों के हमले हुए और मुगल साम्राज्य के बाद ब्रिटिश साम्राज्य आया।
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The good monsoon led to the expansion of the Mauryan Empire and the decline of the Gupta dynasty in the bad, during this time there were also attacks of Arabs and Afghans in the country.
from Dainik Bhaskar /national/news/the-good-monsoon-led-to-the-expansion-of-the-mauryan-empire-and-the-decline-of-the-gupta-dynasty-in-the-bad-during-this-time-there-were-also-attacks-of-arabs-and-afghans-in-the-country-127760723.html via IFTTT
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Indian Economics GK Questions 1-150
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Indian Economics GK Questions 1-150
Indian Economics GK Questions 1-150 for CHSL, CGL, CPO, REET,HSSC exams. Indian Economics GK Questions 1-150 PDF File Download Now. Get Indian Economics GK Questions 1-150 Most Important GK Questions file from here. Download Latest Gk Questions from here. Haryana Latest Gk, Current Affairs, योजना आयोग /नीति आयोग द्वारा भारत को 2020 ई. तक विकसित राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया दृष्टि-पत्र क्या है? – इण्डिया विजन-2020 भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अग्रदूत किसको कहा जाता है? – डाॅ. मनमोहन सिंह भारत में पहली पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई? – 1 अप्रैल, 1951 ‘बुल’ एवं ‘बीयर’ शब्द किससे सम्बन्धित हैं? – शेयर बाजार से ‘अन्त्योदय’ कार्यक्रम का उद्देश्य क्या था? – गरीबों में सबसे अधिक गरीबों की सहायता करना ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के आकलन हेतु किस सूचकांक को आधार माना गया है? – कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भारत निर्माण योजना का सम्बन्ध किससे है? – अवस्थापन विकास किस प्रदेश में सर्वाधिक अनुसूचित जन��ातियाँ निवास करती हैं? – मध्य प्रदेश भारत सरकार के बजट के कुल घाटे में किस घाटे का सबसे अधिक योगदान है? – प्राथमिक घाटा प्रथम पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गयी? – कृषि इस समय भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीयकृत उद्यम कौन-सा है? – भारतीय रेलवे बजट घाटा का क्या अर्थ है? – कुल प्राप्तियों एवं कुल खर्च में अन्तर भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना कब की गई? – 1 अप्रैल, 1935 भुगतान सन्तुलन के विपरीत होने की दशा में कौन-सा कदम स्थिति सुधारने में सहायक होगा? – अवमूल्यन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली बेरोजगारी का मुख्य स्वरूप क्या है? – प्रच्छन्न भारत में सबसे अधिक कृषि भूमि किस फसल के अन्तर्गत है? – चावल भारत की राष्ट्रीय आय में सर्वाधिक योगदान किस क्षेत्र का है? – विनिर्माण क्षेत्र पंचवर्षीय योजनाओं के इतिहास में भारत की सर्वाधिक असफल योजना किस योजना को माना जाता है? – तृतीय राष्ट्रीय विकास परिषद् का पदेन अध्यक्ष कौन होता है? – प्रधानमन्त्री भारत में कर्मचारियों के महँगाई भत्ते निर्धारित करने का क्या आधार है? – उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वितीय पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र के विकास पर सर्वाधिक बल दिया गया था? – उद्योग किस अर्थव्यवस्था में मुद्रा के मूल्य और कीमत स्तर के बीच क्या सम्बन्ध होता है? – प्रतिलोम अण्डा उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है? – तीसरा दसवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत कितने प्रतिशत वार्षिक विकास दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था? – 8% भारत में प्रच्छन्न बेरोजगारी सामान्यतः दिखायी किस क्षेत्र में दिखाई देती है? – कृषि क्षेत्र भारत में सबसे पहले मानव विकास रिपोर्ट जारी करने वाला राज्य कौन–सा है? – मध्य प्रदेश देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली सर्वोच्च संस्था कौन–सी है? – नाबार्ड राष्ट्रीय आय की गणना का आधारवर्ष क्या है? – 1999-2000 चैदहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन हैं? – वाई. वी. रेड्डी भारत में वैट (VAT) कब से लागू हुआ? – 1 अप्रैल, 2005 ‘बोकारो इस्पात संयन्त्र’ की स्थापना किस योजना के दौरान की गयी? – तृतीय भारत में सर्वाधिक गरीबों की संख्या किस राज्य में है? – उत्तर प्रदेश भारत में ‘योजनावकाश’ (Plan Holiday) कब था? – 1966 के सूखे के पश्चात् निजी क्षेत्र में देश में पहला निर्यात प्रोसेसिंग क्षेत्र (EPZ) कहाँ स्थापित किया गया था? – सूरत ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य क्या है? – समाविष्ट आर्थिक वृद्धि भारत में चालू मूल्यों पर प्रति व्यक्ति न्यूनतम आय वाला राज्य कौन-सा है? – बिहार सन् 1938 में काँग्रेस द्वारा गठित ‘राष्ट्रीय नियोजन समिति’ के अध्यक्ष कौन थे? – जवाहरलाल नेहरू भारतीय विदेश व्यापार संस्थान कहाँ स्थित है? – नई दिल्ली भारत में तम्बाकू का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य कौन-सा है? – आन्ध्र प्रदेश भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का अन्तिम रूप से अनुमोदन कौन करता है? – राष्ट्रीय विकास परिषद् मुद्रा अवमूल्यन का क्या अर्थ है? – अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रयुक्त प्रमुख मुद्राओं की तुलना में मूल्य में गिरावट भारत में आर्थिक सर्वेक्षण सरकारी तौर पर किस मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है? – वित्त मन्त्रालय शहरी क्षेत्रों में गरीबी के आकलन हेतु किस सूचकांक को आधार माना गया है? – औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भारत में बेरोजगारी का मुख्य स्वरूप क्या है? – संरचनात्मक भारत में मुद्रास्फीति किसके द्वारा मापी जाती है? – थोक मूल्य सूचकांक भारत में राष्ट्रीय आय की वैज्ञानिक गणना का श्रेय किसे दिया जाता है? – प्रो. वी. के. आर. वी. राव भारत में सिचाई का सर्वप्रथम स्रोत क्या है? – कुआँ व नलकूप मुद्रास्फीति की माप थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर की जाती है। इसके लिए किस वर्ष को आधारवर्ष माना जाता है? – 1993-94 केन्द्र सरकार को सबसे अधिक शुल्क राजस्व किससे प्राप्त होता है? – उत्पाद शुल्क किस पंचवर्षीय योजना में ‘राॅञलग प्लान’ (चक्रीय योजना) की अवधारणा को अपनाया गया था? – छठी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या में वार्षिक वृद्धि दर कितने प्रतिशत थी? – 1.64% वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर कितने प्रतिशत थी? – 73% बिक्री कर कौन लगाता है? – राज्य सरकार किस समिति की संस्तुति पर भारत में ‘वैट’ लागू किया गया? – एल. के. झा समिति द्वितीय पंचवर्षीय योजना विकास के किस माॅडल पर आधारित थी? – पी. सी. महालनोबिस बारहवें वित्त आयोग ने केन्द्रीय करों में राज्यों के लिए कितने प्रतिशत राशि की संस्तुति की थी? – 30.5% भारत में प्रथम ग्रामीण बैंक की स्थापना कब की गई थी? – 2 अक्टूबर, 1975 भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्यालय कहां है? – मुम्बई राजीव गाँधी श्रमिक कल्याण योजना कब प्रारम्भ की गई? – 1 अप्रैल, 2005 किसी वस्तु पर ‘इकोमार्क’ चिन्ह दर्शाता है कि यह किस दृष्टि से अनुकूल उत्पाद है? – पर्यावरण द्वितीय हरित क्रान्ति का सम्बन्ध किससे होगा? – जैव प्रौद्योगिकी के प्रयोग से केन्द्र सरकार के बजट के चालू खाते में व्यय की सबसे बड़ी मद क्या है? – ब्याज भुगतान योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी कैलोरी पोषण प्राप्त न करने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है? – 2400 कैलोरी ‘योजना’ पत्रिका का प्रकाशन कहाँ से होता है? – सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारत में 2001-2011 ई. के बीच जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर कितनी रही? – 7.70% वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1000 स्त्रियों पर पुरुषों की संख्या (लिगानुपात) क्या है? – 943 सरकार ने देश में बीमा व्यवसाय के नियमन के लिए किस संस्था का गठन किया है? – बीमा नियमन एवं प्राधिकरण किसी वस्तु पर उत्पाद शुल्क किसके सन्दर्भ में देय होता है? – उत्पादन के सन्दर्भ में एक रुपये के नोट पर ��िसके हस्ताक्षर होते हैं? – गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक देश का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक कौन-सा है? – भारतीय स्टेट बैंक ‘गरीबी हटाओ’ नारा सर्वप्रथम किस पंचवर्षीय योजना के दौरान दिया गया? – चौथी योजना आयोग के अनुसार शहरी क्षेत्रों में कितनी कैलोरी पोषण न प्राप्त करने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है? – 2100 कैलोरी भारत में सबसे पहले किसने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया था? – दादाभाई नौरोजी बी.सी.सी.आई. (B.C.C.I.) बैंक कौन-सा है? – अंतर्राष्ट्रीय बैंकिग संगठन भारत में सर्वप्रथम बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई, 1969 को किया गया। उस समय कितने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था? – 14 सस्ती मुद्रा का अर्थ क्या है? – ब्याज की कम दर राष्ट्रीय नियोजन में ‘रोलिंग प्लान’ की अवधारणा किसके द्वारा लागू की गयी थी? – जनता सरकार सुनिश्चित लागत का अर्थ क्या है? – उत्पादक संसाधन के लिए की गई अदायगियाँ भारत में हीरे की खानें किस राज्य में हैं? – मध्य प्रदेश भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की स्थापना कब हुई? – 1956 में किसी अर्थव्यवस्था में क्षेत्रों को सार्वजनिक और निजी में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है? – उद्यमों का स्वामित्व दलाल स्ट्रीट कहाँ स्थित है? – मुम्बई स्टेट बैंक आॅफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण कब किया गया था? – 1 जुलाई, 1955 ट्राइसेम (TRYSEM) कार्यक्रम किससे सम्बन्धित है? – स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवकों से भारत में हरित क्रान्ति की शुरूआत कब हुई? – 1967-68 ई. में जो वस्तुएँ दुर्लभ हों और उनकी आपूर्ति सीमित हो, उन्हें क्या कहते हैं? – आर्थिक वस्तुएँ देश के सबसे बड़े एवं सबसे पुराने म्यूचुअल फण्ड यू.टी.आई. का दो अलग-अलग हिस्सों UTI-I तथा UTI-II में विभाजन कब से प्रभावी है? – 1 फरवरी, 2003 भारतीयों द्वारा सीमित देयताओं वाला संचालित पहला बैंक कौन–सा था? – अवध काॅमर्शियल बैंक भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम कब आरम्भ हुआ था? – 2 अक्टूबर, 1952 अभी तक कुल कितने वित्त आयोग का गठन किया जा चुका है? – 14 किस योजना के दौरान भारत में हरित क्रान्ति का आगमन हुआ? – योजनावकाश काल ‘योजना अवकाश’ काल किस अवधि को माना जाता है? – 1966-69 भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना वर्ष 1988 में की गई थी। इसे वैधानिक दर्जा कब प्रदान किया गया? – 30 जनवरी, 1992 भारत में राष्ट्रीय जलमार्गों की संख्या कितनी है? – 4 अर्थ तंत्र में ज्ञान, तकनीकी कुशलता, शिक्षा आदि को क्या माना जाता है? – मानव पूँजी भारत में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा किस पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत दिया गया था? – छठवीं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना कब शुरू की गई? – 2 फरवरी, 2006 भारत की राष्ट्रीय आय किसके द्वारा अनुमानित होती है? – केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन किस वर्ष नाबार्ड (NABARD) की स्थापना हुई? – 1982 मिश्रित अर्थव्यवस्था का क���या अर्थ है? – वृहत्, लघु एवं कुटीर उद्योगों का सहअस्तित्व कौन-सी संस्था शेयर बाजार पर नियन्त्रण रखती है? – यू.टी.आई. मुम्बई स्टाॅक एक्सचेंज का सूचकांक क्या है? – सेंसेक्स केलकर टास्क फोर्स की सिफारिशों का सम्बन्ध किससे है? – करों से बोकारो स्टील प्लान्ट किस देश के सहयोग से स्थापित किया गया है? – रूस नरसिम्हन समिति का सम्बन्ध किससे है? – बैंक क्षेत्र के सुधार यूरो (Euro) मुद्रा किस वर्ष में प्रारम्भ की गई? – 1999 में भारत में पहली स्वर्ण रिफायनरी कहाँ स्थापित की गई है? – शिरपुर किस नगर को ‘इलेक्ट्राॅनिक सिटी’ के रूप में जाना जाता है? – बंगलुरू भारत में राष्ट्रीय आय की गणना का कार्य कौन करता है? – केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन भारत में FERA का स्थान किसने ले लिया है? – FEMA वर्तमान में राष्ट्रीयकृत बैंकों की कुल संख्या कितनी है? – 19 करेन्सी नोट प्रेस कहां अवस्थित है? – नासिक द्वितीय पंचवर्षीय योजना का प्रारूप किसने तैयार किया था? – पी. सी. महालनोबिस भारत के आयात का अधिकतम भाग कहाँ से आता है? – ओपेक भारत में योजना आयोग का गठन किस वर्ष किया गया था? – 1950 खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का मुख्यालय कहाँ स्थित है? – रोम भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) का मुख्यालय कहाँ स्थित है? – लखनऊ प्रसिद्ध नारा ‘गरीबी हटाओ’ कब दिया गया था? – पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974–79) के दौरान मुद्रास्फीति में क्या बढ़ता व गिरता है? – वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं और मुद्रा का मूल्य गिरता है 1967–68 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 20 रुपये थी, यह सर्वप्रथम किसने अभिनिश्चित किया? – दादा भाई नौरोजी किसान क्रेडिट कार्ड योजना किस वर्ष शुरू की गई थी? – 1998 नरसिंहम समिति किस सुधार से सम्बन्धित है? – बैंकिग सुधार से भारत में किस प्रकार के रासायनिक उर्वरक की खपत सर्वाधिक होती है? – नाइट्रोजनी प्रति व्यक्ति आय निकालने के लिए राष्ट्रीय आय को किससे भाग दिया जाता है? – देश की कुल जनसंख्या से भारत में हरित क्रान्ति का सर्वाधिक प्रभाव किस फसल पर पड़ा? – मक्का ‘सर्वोदय योजना’ किसके द्वारा प्रारम्भ की गयी? – जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान कहाँ स्थित है? – जयपुर गिल्ट एज्ड बाजार किससे सम्बन्धित है? – सोना-चाँदी/���र्राफा स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय रुपये का कितनी बार अवमूल्यन किया गया है? – तीन वैट (VAT) किस प्रकार का कर है? – अप्रत्यक्ष बारहवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या है? – 1 अप्रैल, 2012 से 31 मार्च, 2017 सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र को कहा जाता है? – तृतीयक भारत में जनसंख्या विभाजक दशक कौन–सा माना जाता है? – 1911-1921 ई. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या क्या थी? – 1.21 अरब नीति आयोग के उपाध्यक्ष को भारत सरकार के सरकारी वरीयता क्रम में महत्व का कौन-सा दर्जा दिया गया है? – भारत सरकार के ��ैबिनेट मंत्री के समान ‘आत्मनिर्भरता की प्राप्ति’ को सर्वप्रथम किस योजना का मुख्य उद्देश्य निर्धारित किया गया था? – चौथी उत्पादन का सर्वाधिक गतिशील कारक कौन-सा है? – ��ूँजी भारत में एग्रो इकोलाॅजिकल जोन्स की संख्या कितनी है? – 20 रुपए का सर्वप्रथम अवमूल्यन कब हुआ? – 20 सितंबर, 1949 ‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम कब शुरू किया गया? – 1970 सर्वाधिक समुद्री मछलियाँ किस राज्य में पकड़ी जाती हैं? – गुजरात काली चाय का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश कौन-सा है? – भारत रबी की फसलों की बुआई कब की जाती है? – अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर भारत में मुद्रास्फीति की गणना किस पर आधारित है? – थोक मूल्य सूचकांक व्यापारिक या नकदी फसलें कौन-सी होती हैं? – कपास, गन्ना, तिलहन, चाय, जूट तथा तंबाकू अंगूर की प्रति हेक्टेयर उपज में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है? – पहला कुल पशुओं की संख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का कौन-सा स्थान है? – दूसरा खरीफ की फसलों की बुआई कब की जाती है? – जून-जुलाई देश में कृषि के अंतर्गत किस तरह के उर्वरकों का सर्वाधिक उपयोग होता है? – नाइट्रोजनी विश्व का सबसे बड़ा चमड़ा उत्पादक देश कौन-सा है? – भारत
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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Coronavirus: अगस्त में पीक पर पहुंचने के बाद कम होगा कोरोना का असर, शोध में सामने आई जानकारी
विनोद चमोली, अमर उजाला, चंबा (टिहरी) Updated Sat, 27 Jun 2020 01:30 AM IST
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देश में कोरोना वायरस का असर इस साल के अंत तक खत्म होने का गणितीय आकलन किया गया है। एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी के भौतिकी विभाग ने एसआईआर मॉडल की मदद से जुटाए गए आंकड़ों का गणितीय विश्लेषण करने के बाद अगस्त में कोरोना वायरस के पीक पर पहुंचने के बाद कम होने का अनुमान लगाया है।
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी परिसर बादशाहीथौल के पूर्व निदेशक और भौतिक विज्ञान के प्रो. आरसी रमोला ने ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल का उपयोग करके कोरोना वायरस महामारी पर एक शोध किया है।
एसआईआर मॉडल की मदद से कोरोना वायरस संक्रमण दर, मौत के आंकड़ों और ठीक हुए मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। शोधपत्र को रिसर्चगेट के कोविड-19 अनुसंधान समुदाय की वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है। 
शोध में कोरोना वायरस संक्रमण के 30 जनवरी को मिले पहले मामले से लेकर लॉकडाउन काल के 20 मई तक के आंकड़े लिए गए। अगस्त प्रथम सप्ताह में कोरोना संक्रमितों की संख्या पीक पर पहुंचने के बाद कम होने लगेगी। शोध के आधार पर देशभर से दिसंबर अंत तक कोविड-19 के असर के खात्मे का अनुमान है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में आंकड़ों का स्वरूप बदल भी सकता है, जिससे वायरस के चरम पर पहुंचने और खत्म होने के अनुमानित समय में बदलाव भी हो सकता है।
प्रो. रमोला ने बताया कि कोविड-19 की वैक्सीन के बनने तक सामाजिक दूरी और गाइड लाइन का पालन करने से ही वायरस के प्रसार को रोक सकते हैं। रोकथाम के उपायों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है, जो देश में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल ब्रिटिश वैज्ञानिक कर्माक और मैक्केंडिक ने घनी आबादी क्षेत्र में संक्रामक महामारी का चरम पर पहुंचने से लेकर खात्मा होने तक का पता लगाने के लिए विकसित किया है। मॉडल से पूरी आबादी के तीन तरह के व्यक्तियों की बीमारी के आधार पर गणितीय गणना की जाती है।
पहला अतिसंवेदनशील व्यक्ति, जो संक्रमित नही है, लेकिन संक्रमित हो सकते हैं। दूसरा, संक्रमित व्यक्ति, जिनको यह बीमारी होती है और इसे अतिसंवेदनशील तक पहुंचा सकते हैं। तीसरे, ठीक हुए अथवा मृत व्यक्ति, जो संक्रमित नही हो सकते हैं और दूसरों को बीमारी भी नही पहुंचा सकते हैं। इन आंकड़ों की इस मॉडल में गणितीय विश्लेषण करने के बाद महामारी की भविष्यवाणी की जाती है। 
सार
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के भौतिकी विभाग ने गणितीय विश्लेषण से लगाया अनुमान
एसआईआर मॉडल का उपयोग कर किया गया संक्रमण पर शोध
विस्तार
देश में कोरोना वायरस का असर इस साल के अंत तक खत्म होने का गणितीय आकलन किया गया है। एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी के भौतिकी विभाग ने एसआईआर मॉडल की मदद से जुटाए गए आंकड़ों का गणितीय विश्लेषण करने के बाद अगस्त में कोरोना वायरस के पीक पर पहुंचने के बाद कम होने का अनुमान लगाया है।
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के एसआरटी परिसर बादशाहीथौल के पूर्व निदेशक और भौतिक विज्ञान के प्रो. आरसी रमोला ने ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल का उपयोग करके कोरोना वायरस महामारी पर एक शोध किया है।
एसआईआर मॉडल की मदद से कोरोना वायरस संक्रमण दर, मौत के आंकड़ों और ठीक हुए मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। शोधपत्र को रिसर्चगेट के कोविड-19 अनुसंधान समुदाय की वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है। 
शोध में 20 मई तक के आंकड़े लिए गए
शोध में कोरोना वायरस संक्रमण के 30 जनवरी को मिले पहले मामले से लेकर लॉकडाउन काल के 20 मई तक के आंकड़े लिए गए। अगस्त प्रथम सप्ताह में कोरोना संक्रमितों की संख्या पीक पर पहुंचने के बाद कम होने लगेगी। शोध के आधार पर देशभर से दिसंबर अंत तक कोविड-19 के असर के खात्मे का अनुमान है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में आंकड़ों का स्वरूप बदल भी सकता है, जिससे वायरस के चरम पर पहुंचने और खत्म होने के अनुमानित समय में बदलाव भी हो सकता है।
प्रो. रमोला ने बताया कि कोविड-19 की वैक्सीन के बनने तक सामाजिक दूरी और गाइड लाइन का पालन करने से ही वायरस के प्रसार को रोक सकते हैं। रोकथाम के उपायों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है, जो देश में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
क्या है एसआईआर मॉडल
ससेप्टेबल-इंफेक्टेड-रिकवर्ड (एसआईआर) मॉडल ब्रिटिश वैज्ञानिक कर्माक और मैक्केंडिक ने घनी आबादी क्षेत्र में संक्रामक महामारी का चरम पर पहुंचने से लेकर खात्मा होने तक का पता लगाने के लिए विकसित किया है। मॉडल से पूरी आबादी के तीन तरह के व्यक्तियों की बीमारी के आधार पर गणितीय गणना की जाती है।
पहला अतिसंवेदनशील व्यक्ति, जो संक्रमित नही है, लेकिन संक्रमित हो सकते हैं। दूसरा, संक्रमित व्यक्ति, जिनको यह बीमारी होती है और इसे अतिसंवेदनशील तक पहुंचा सकते हैं। तीसरे, ठीक हुए अथवा मृत व्यक्ति, जो संक्रमित नही हो सकते हैं और दूसरों को बीमारी भी नही पहुंचा सकते हैं। इन आंकड़ों की इस मॉडल में गणितीय विश्लेषण करने के बाद महामारी की भविष्यवाणी की जाती है। 
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शोध में 20 मई तक के आंकड़े लिए गए
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udaansociety · 7 years ago
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प्रकृति रक्षकों का हुआ शेखा झील पर सम्मान |
अलीगढ़ ८ जनवरी : हरितिमा पर्यावरण सुरक्षा समिति के बैनर तले सुप्रसिद्ध शेखा झील पर प्रकृति की रक्षा मं  अपना जीवन होम कर देने वाले व् अंतराष्ट्रीय मंचों तक शेखा झील की रक्षा की आवाज़ उठाने वालों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया | हरित���मा के अध्यक्ष वरिष्ठ पर्यावरणविद सुबोध नंदन शर्मा के नेतृत्व में शेखा झील पर एक कार्यक्रम आयोजित कर हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हुए जीव विज्ञान संकाय के डीन व् जंतु विज्ञानं विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो० एचएसए याह्या, भूगर्भशास्त्र के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रो० लि��ाकत अली खान राव व् अलीगढ़ के पूर्व डीएफओं व् हाल ही में वन निगम इलाहाबाद से सेवानिवृत्त हुए डीपी गुप्ता का शाल ओढ़ाकर व् प्रशस्तिपत्र देकर कर सम्मान किया गया | इस अवसर पर बोलते हुए प्रो० याह्या ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का शेखा झील से पुराना नाता है | वहाँ के पाँच छात्र शेखाझील पर शोध भी कर चुके हैं | वह स्वयं भी १९८८ से यहाँ से जुड़े रहे हैं | उन्होंने कहाँ की यह झील एक मानव निर्मित वेटलैंड की श्रेणी में आती है, जिसमें ७५०० किलोमीटर दूर से पक्षी लगभग चार माह के लिए आते हैं | यह सिलसिला हजारों हजार वर्षों से चल रहा है | इसलिए हम मानवों की यह जिम्मेदारी है कि शेखा झील अपने पुरातन स्वरुप में बनी रहे | जिसके लिए आवश्यक है कि इसमें पानी की भरपूर मात्रा रहे, पेड़ सीमित रहें व् अधिक निर्माण कार्य न हो | अगर यह सब हुआ हो हम पक्षियों का प्राकृतिक आवास खो देगें | प्रो० लियाकत अली राव व् डीपी गुप्ता ने प्रकृति व् हरितिमा समिति से जुड़े रहने के अपने संकल्प को दोहराया | इस अवसर पर बोलते हुए पूर्व एमएलसी व् जिम कोर्बेट फाउंडेशन के सदस्य विवेक बंसल ने कहा कि शेखा झील के  मूल स्वरुप को बचाने के लिए जिस किसी भी सहयोग की आवश्यकता हो उसके लिए वह हमेशा तैयार हैं | हरितिमा के अध्यक्ष सुबोध नंदन शर्मा के बताया की ९ जनवरी को जिले के विभिन्न सरकारी व् गैर सरकारी स्कूली बच्चों के सहयोग से पक्षी गणना व् पक्षियों की पहचान हेतु अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविध्यालय के विशेषज्ञों की देखरेख एक मेले का आयोजन किया जा रहा है | कार्यक्रम में विशेष रूप से प्रो ० सतीश कुमार शर्मा, उड़ान सोसाइटी के अध्यक्ष ज्ञानेंद्र मिश्रा, शेखा झील क्षेत्र विकास समिति से संतोष सिंह, फोटो जर्नलिस्ट रामवीर सिंह, मो० इशाक, कल्याण, संजय आदि उपस्थित थे | क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक कुमार निमेष ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया |
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newshut24-blog · 7 years ago
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हिमाचल में भाजपा के दिग्गज पिछड़े… शिमला। प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने की और अग्रसर है। वहीं भाजपा के दिग्गज पीछे चल रहे हैं। नेता विपक्ष व भाजपा के मुख्यमंत्री पद उम्मीदवार प्रो. प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से अभी दो राउंड की गणना के बाद पीछे चल रहे हैं। वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ऊना से भी पीछे चल रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अर्की और उनके बेटे विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण से आगे चल रहे हैं। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविन्द्र सिंह सुक्खू भी नादौन से आगे चल रहे हैं। 57 सीटों के रूझानों में भाजपा 33 पर आगे चल रही है। जबकि कांग्रेस 21 सीटों पर आगे चल रही है। दो पर निर्दलीय और एक पर सीपीआईएम आगे चल रही है।
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